भारत की प्राचीन परंपरा को प्रदर्शित करती गौबर और फूलों की संझा की भोज मार्ग में सामाजिक महासंघ की मातृ शक्तियों ने मिलकर की महाआरती, सकल हिन्दू समाज की 50 से अधिक महिलाओं की रहीं सहभागिता, गौबर-फूलों से संझा बनाने वाली बालिकाओं और युवतियों का सामाजिक महासंघ महिला इकाई ने सम्मान भी किया, बालिकाओं और युवतियों के साथ बैठकर गाए संझा माता के मधुर गीत

भारत की प्राचीन परंपरा को प्रदर्शित करती गौबर और फूलों की संझा की भोज मार्ग में सामाजिक महासंघ की मातृ शक्तियों ने मिलकर की महाआरती, सकल हिन्दू समाज की 50 से अधिक महिलाओं की रहीं सहभागिता
गौबर-फूलों से संझा बनाने वाली बालिकाओं और युवतियों का सामाजिक महासंघ महिला इकाई ने सम्मान भी किया
बालिकाओं और युवतियों के साथ बैठकर गाए संझा माता के मधुर गीत
झाबुआ। भारत में वर्तमान दौर में आधुनिक, टेक्निकल और वैज्ञानिक युग के बीच भी आज भी कई समाज के लोग वर्षभर आने वाले त्यौहारों-पर्वों के दौरान विरासत में मिली अपनी प्राचीन संस्कृति और पंरपराओं को कायम रखे हुए है। इसमें से एक संझा माता का पर्व भी है, जो विशेषकर गवली समाज की बालिकाओं और युवतियों द्वारा मनाया जाता है।
जानकारी देते हुए सामाजिक महासंघ की महिला इकाई की जिला प्रभारी श्रीमती शीतल जादौन एवं रितू सोड़ाणी ने बताया कि गणेषोत्सव के बाद श्राद्ध पक्ष लगते ही संझा माता का पर्व भी आरंभ हो जाता है। यह हमारी लोक संस्कृति और प्राचीन परंरपराओं का जीवट उदाहरण है। गवली समाज के साथ कुछ अन्य समाज की भी बालिकाओं और युवतियों द्वारा संझा के इस 16 दिवसीय पर्व के दौरान सु-योग्य वर की कामना और परिवार में सुख-शांति तथा समृद्धि के लिए गौबर और फूलों से अपने घरों की दीवारों पर गौबर और फूलों से प्रातःकाल एवं संध्याकाल सुंदर संझाजी का निर्माण करती है। बाद संझाजी की आरती कर प्रसादी वितरण बाद समूह में संझाजी के गीत गाए जाते है। अंतिम दिन किलाकोट बनाकर रात्रि जागरण कर अगले दिन अलसुबह इसका विसर्जन किया जाता है।
प्राचीन पंरपराएं होने लगी है विलुप्त
सामाजिक महासंघ से जुड़ी वरिष्ठ श्रीमती सुशीला भट्ट ने बताया कि समय के निरंतर बदलाव के बीच बाजारों में स्टेशनरी दुकानों पर रेडिमेड संझा मिलने से इसका उपयोग अधिक किया जाने लगा। ऐसे में सामाजिक महासंघ की जिला महिला इकाई ने शहर में ऐसी बालिकाएं एवं युवतियां, जो आज भी संझा माता पर्व के दौरान अपने हाथों से गौबर और फूलों से संझा बनाकर लोक गीत गाती है, उनका शहर में सर्वे कर ऐसी बालिकाओं और युवतियों का चयन किया गया। बाद इनका सामूहिक कार्यक्रम 24 सितंबर, शनिवार रात्रि 8 बजे से भोज मार्ग में रखा गया।
संझा माताजी की महाआरती कर गाए लोक गीत
भोज मार्ग में जिस घर में बालिका द्वारा दीवार पर गौबर और फूलों से संझा माताजी बनाई गई। वहां सामाजिक महासंघ की महिला इकाई के नेतृत्व में सकल हिन्दू समाज की करीब 50 से अधिक मातृ शक्तियों ने अपने-अपने समाज के पारंपरिक परिधानों में सम्मिलित होकर भोज मार्ग की महिलाओ और बालिकाओं के साथ मिलकर संझाजी की महाआरती की। बाद समूह में बैठकर उनके साथ सामाजिक महासंघ की मातृ शक्तियों ने संझा माता के ‘‘संजा तू थारा घर जा की थारी बाई मारेगा … कूटेगा, छोटी सी गाड़ी रूडकती जाए .. जैसे लोक गीत गाकर माता रानी का आशीर्वाद के साथ आनंद भी प्राप्त किया। इस दौरान समस्त मातृ शक्तियों ने मिलकर शहर में गौबर-फूूलों और चमकीली पन्नीयों से संझाजी बनाने वाली बालिकाओं और युवतियों की प्राचीन पंरपरा को जीवित रखने के दृष्टिगत  उनकी प्रसंशा करते हुए शाल-श्रीफल से सभी का सम्मान किया।
फोटो 013 -ः झाबुआ के भोज मार्ग में बालिका द्वारा गौबर-फूलों और चमकीली पन्नीयो से बनाई संझाजी।
फोटो 014 -ः सामाजिक महासंघ की मातृ शक्तियों ने भोज मार्ग की महिलाओं और बालिकाओं के साथ गाए संझा माता के सुंदर गीत।

Noman Khan
Author: Noman Khan

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